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श्री 1008 आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर क्रांतिनगर में सिद्धचक्र महामंडल विधान

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-जीवन में सिद्ध अवस्था को प्राप्त करना है तो हमें सिद्धों की आराधना करनी होगी

जीवन में सिद्ध अवस्था को प्राप्त करना है तो हमें सिद्धों की आराधना करनी होगी। हमें जानना होगा वो कैसे सिद्ध परमेष्ठी बने हैं, उनका संसार से आवागमन कैसे छूट गया ? परम पद में पहुंचने के लिए उन्होंने क्या प्रयत्न किया ? क्या हम भी सिद्ध बन सकते हैं ? यह सब चिंतन जिसने कर लिया वह सिद्धत्व दशा को प्राप्त कर सकता है, इसीलिए सिद्धचक्र महामंडल विधान की आराधना की जाती है।

यह बातें श्री 1008 आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर क्रांतिनगर में सिद्धचक्र महामंडल विधान आराधना के दौरान धर्म सभा को संबोधित करते हुए विधानाचार्य बाल ब्रह्मचारी मनोज भैया ने कहीं। दरअसल सिद्धचक्र महामंडल विधान के रूप में विशिष्ट धार्मिक अनुष्ठान श्री आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर क्रांतिनगर में ललितपुर से पधारे विधानाचार्य बाल ब्रह्मचारी मनोज भैया द्वारा संपन्न कराया जा रहा है।

जिसके तहत 8 दिन तक लगातार सिद्धों की आराधना के दौरान क्रमश 8, 16, 32, 64, 128, 256, 512 और 1024 अर्घ्य समर्पण किए जाते हैं। इसी क्रम में विधान के चौथे दिन 64 अर्घ्य विधानाचार्य भैय्या ने अर्पित करवाए। धार्मिक आयोजन के दौरान सुबह बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा की सामग्री लेकर मंदिर पहुंचे। सर्व प्रथम उन्होंने श्रीजी का अभिषेक किया एवं शांतिधारा की, तदोपरांत पूजन एवं विधान प्रारम्भ हुआ और अर्घ्य चढ़ाए गए।

विधान के दौरान विधानाचार्य जी ने कहा कि जब तक मनुष्य के पुण्य का योग है। उसके जीवन में निरंतर प्रगति होती है, वह ऊंचाई पर चढ़ता है। कोई रोकना भी चाहे तो नहीं रूकता, वह चलेगा और निरंतर चलेगा। यदि पाप का उदय आएगा तो कोई रोक भी नहीं सकेगा। उसे निश्चत रूप से गिरना ही पड़ेगा।

इस बात को निश्चित रूप से समझिए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि रावण जैसा जो तीन खंड का अधिपति था। जिसने स्वर्ग के इंद्र को भी चुनौती दे डाली थी। ऐसा रावण जब पाप का उदय आया तो उसके ही द्वारा छोड़ा गया चक्र स्वयं के विनाश का कारण बन गया। विधान के बीच में भोपाल से आई भूपेन्द्र संगीत मंडली ने आध्यात्मिक भजनों की प्रस्तुति कर वातावरण को पूरी तरह से भक्तिमय बना दिया।

श्रद्धालुओं ने स्वर लहरियों के बीच नृत्य कर अपनी भक्ति भावना का परिचय दिया। इस अवसर पर विधानाचार्य जी ने कहा, विधान मोक्ष प्राप्ति का उत्तम साधन है। इससे पूर्व विधानाचार्य ने विधान की महत्ता भी बताई और विधान से होने वाले अप्रत्यक्ष लाभ बताए। सायंकाल पंचपरमेष्ठी की महाआरती में हाथों में दीपक लेकर श्रद्धालुगण झूम उठे।

सायंकालीन आरती के पश्चात् आयोजित धार्मिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के चरणों में स्वरांजलि अर्पित की गई। इस प्रस्तुति में आचार्य श्री विद्यासागर जी के जीवन का विवरण भजन के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। जिसमें सरस, प्रतिभा, नमिता, सोना, उषा, संध्या, रीतिका, मनोज, आकृत, गौरव जैन आदि ने मनमोहक भजन प्रस्तुत किए।

साथ ही बच्चों द्वारा इस कार्यक्रम में नृत्य द्वारा गुरुदेव को श्रद्धांजलि दी गई l जिसमें अणिमा, इवान, वेदांता, पीहू, कुहू, रिद्धिमा एवं दिया की प्रस्तुति ने चार चाँद लगाए l इस कार्यक्रम में गुरुदेव को याद करते हुए समस्त श्रोता एवं आचार्य श्री के भक्त गण अश्रु नहीं रोक पाए l यह कार्यक्रम श्रीमती मंगला जैन के निर्देशन में किया गया l


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