
👇 खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं
बिलासपुर। हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की के अपहरण और यौन शोषण के मामले के आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए सजा में आंशिक संशोधन किया है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि पीड़िता की गवाही स्पष्ट, सुसंगत और विश्वसनीय हो तो दोषसिद्धि के लिए अन्य साक्ष्यों की आवश्यकता नहीं होती। कोर्ट ने आरोपी को दी गई आजीवन कारावास की सजा को 20 वर्षों के कठोर कारावास में बदल दिया।
घटना 11 नवंबर 2021 की है, जब 13 वर्षीय नाबालिग लड़की अपने घर के बाहर खेल रही थी। उसी दौरान आरोपी राजेलाल मेरावी (27 वर्ष), निवासी ग्राम सिंगबोरा, जिला खैरागढ़-छुईखदान-गंडई ने उसका अपहरण कर लिया। अभियोजन के अनुसार आरोपी लड़की का मुंह दुपट्टे से बांधकर उसे जबरन अपने घर ले गया और वहां दो बार दुष्कर्म किया। अगली सुबह, पीड़िता को आरोपी के घर में डरा-सहमा पाया गया। पीड़िता के पिता ने थाना सलेहवारा में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने आरोपी के खिलाफ धारा 342, 363, 376 आइपीसी और पॉक्सो एक्ट की धारा 3/4 के तहत मामला दर्ज किया गया।
ट्रायल कोर्ट की सजा को दी हाईकोर्ट में चुनौती
खैरागढ़ के विशेष अपर सत्र न्यायाधीश ने 22 जून 2023 को दोषी ठहराते हुए आरोपी को धारा 342 (गलत तरीके से रोकने) के तहत एक वर्ष कठोर कारावास, धारा 363 (अपहरण) के तहत सात वर्ष कठोर कारावास, पॉक्सो एक्ट की धारा 3/4 के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई। दोषी ने हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी। अपीलकर्ता के वकील ने दलील दी कि, ट्रायल कोर्ट ने केवल पीड़िता की गवाही के आधार पर दोषसिद्धि दी, जबकि अन्य गवाहों की गवाही में विरोधाभास था। मेडिकल रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई और पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए आसिफिकेशन टेस्ट (हड्डियों की जांच) नहीं कराई गई।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख

राज्य सरकार की ओर से पैनल लायर नितांश जायसवाल ने तर्क दिया कि, पीड़िता की उम्र स्कूल के रिकॉर्ड और प्रधानाध्यापक की गवाही से स्पष्ट रूप से प्रमाणित हुई है। पीड़िता, उसकी मां और पिता की गवाही सुसंगत और पूरी तरह भरोसेमंद थी। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जिनमें प्रमुख रूप से स्टेट आफ पंजाब वर्सेस गुरमित सिंह (1996) और गणेशन वर्सेस स्टेट (2020) शामिल थे। इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि पीड़िता की गवाही निष्कलंक, भरोसेमंद और स्पष्ट हो, तो उसे अन्य साक्ष्यों से पुष्ट करने की आवश्यकता नहीं होती। कोर्ट ने दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए सजा में संशोधन किया और आरोपी को आजीवन कारावास की जगह 20 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी।
Discover more from VPS Bharat
Subscribe to get the latest posts sent to your email.