
👇 खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं
बिलासपुर।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आयुर्वेदिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र में पिछले 20 वर्षों से दैनिक वेतन पर कार्यरत औषधालय सेवक को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने कर्मचारी की याचिका स्वीकार करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि उसके अभिलेखों का उचित मूल्यांकन कर, नियमों के अनुसार, उसकी सेवाओं को नियमित किया जाए।
न्यायालय ने क्या कहा?
जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की एकल पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि मामले के तथ्यों, परिस्थितियों और सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित सिद्धांतों के आधार पर याचिका स्वीकार की जाती है। कोर्ट ने प्रतिवादी अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे अन्य समान परिस्थिति वाले कर्मचारियों के अभिलेखों का निरीक्षण करें और यदि याचिकाकर्ता की स्थिति भी उनके समान पाई जाती है, तो उसकी सेवाओं को भी उसी तिथि से नियमित किया जाए, जिस तिथि से अन्य कर्मचारियों को नियमित किया गया था।
याचिकाकर्ता का पक्ष
याचिकाकर्ता, जगरनाथ, दो दशकों से आयुर्वेदिक सेवा केंद्र में औषधालय सेवक के रूप में कार्यरत हैं और उनके पास स्थायी पद के लिए आवश्यक सभी योग्यताएं मौजूद हैं। उन्होंने अधिकारियों को कई बार अपनी सेवाएं नियमित करने के लिए आवेदन भी दिया था।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि छत्तीसगढ़ सरकार ने 5 मार्च 2008 के सर्कुलर के आधार पर अन्य समान स्थिति वाले दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित किया था। ऐसे में उसे नियमितीकरण से वंचित करना न केवल अवैध और मनमाना था, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन था।
सुप्रीम कोर्ट का हवाला

हाईकोर्ट ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई कर्मचारी बिना किसी आरोप या कदाचार के 10 वर्षों से अधिक समय तक सेवा दे रहा है, तो उसे सेवा नियमितीकरण का लाभ मिलना चाहिए। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने शासन को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता के अभिलेखों का मूल्यांकन कर उसे भी नियमित किया जाए, जैसा कि अन्य कर्मचारियों के साथ किया गया था।
Discover more from VPS Bharat
Subscribe to get the latest posts sent to your email.