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जिस आँगन में कभी हँसी की गूँज उठती थी, जहाँ बहन अपने भाई को तिलक लगाकर आरती उतारती थी, आज वही आँगन सन्नाटे में डूबा है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया — भाई दूज का पावन पर्व — जब हर बहन अपने भाई के ललाट पर प्रेम का तिलक लगाती है, उसकी लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती है। मगर इस बार पूनम की आँखों में सिर्फ आँसू हैं। उसका प्यारा भाई सोनू, जो हर साल दिल्ली से भी आ जाया करता था, अब दुबई की दूरियों में खो गया है।
रक्षाबंधन पर भी न आ पाने का मलाल, अब भाई दूज पर और गहरा गया है। पूजा की थाली सजी है, दीपक टिमटिमा रहा है, लेकिन आँगन की रौनक जैसे उसके साथ ही परदेस चली गई है। माँ की आँखें दरवाज़े की ओर टिकी हैं, और पूनम हर आवाज़ पर चौंक उठती है — शायद भाई आ गया हो!

परंपरा, प्रेम और दूरी के इस मिलन में एक सच्चाई झलकती है — रिश्तों की डोर भले भौगोलिक सीमाओं से बँध जाए, मगर दिलों की निकटता कभी कम नहीं होती। वीडियो कॉल पर ही सही, सोनू ने जब “भाई दूज की शुभकामनाएँ” कही, तो पूनम के आँसू मुस्कान में बदल गए।
क्योंकि प्यार की ये डोर, दूरी से नहीं — दिल से बंधी होती है।
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