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उड़ीसा में सराहा गया छत्तीसगढ़ का गेड़ी नृत्य

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भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और उड़ीसा शासन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित बालीयात्रा कटक महोत्सव में छत्तीसगढ़ की लोकप्रिय संस्था लोक श्रृंगार भारती, तिफरा ने अपने गेड़ी नृत्य से धूम मचाई। अनिल कुमार गढ़ेवाल के नेतृत्व में बीस सदस्यीय दल ने 16 नवंबर को इस पारंपरिक नृत्य का प्रदर्शन किया।

यह महोत्सव महानदी के तट पर रेत के मैदान में आयोजित है, जो 15 नवंबर से शुरू होकर 22 नवंबर तक चलेगा। इस आयोजन में पांच देशों और 16 राज्यों के कलाकार भाग ले रहे हैं।

प्रशंसा और सम्मान

गेड़ी नृत्य से प्रभावित होकर कटक कलेक्टर दत्तात्रेय भावसाहेब शिंदे (आईएएस) ने अनिल कुमार गढ़ेवाल को मंच पर शाल, श्रीफल, प्रशस्ति पत्र, और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।

अनिल कुमार गढ़ेवाल के गाए गीत “काट ले हरियर बाँसे जो भला” ने दर्शकों को भाव विभोर कर दिया। मुख्य मांदल वादक संजय रात्रे और मोहन डोंगरे ने अपनी कुशलता से तालियों की गड़गड़ाहट से तट को गूंजायमान कर दिया। महेश नवरंग की बांसुरी की मधुर धुन और सौखी लाल कोशले की हारमोनियम संगत ने समां बांध दिया।

अनूठे प्रदर्शन से मोहित दर्शक

  • प्रभात बंजारे और सूरज खांडे ने गेड़ी पर खड़े रहते हुए शुभम भार्गव को अपने कंधों पर खड़ा किया, जिसने दर्शकों को आश्चर्यचकित कर दिया।
  • चेतन कुर्रे और चंद्रशेखर केवट ने एक ही गेड़ी पर नृत्य कर अपनी कला का अद्भुत प्रदर्शन किया।
  • लक्ष्मी नारायण मांडले, अमित भार्गव, और मनोज मांडले के आकर्षक नृत्य ने दर्शकों की खूब वाहवाही बटोरी।

पारंपरिक लोक कला की पुनरुद्धार यात्रा

गेड़ी नृत्य, छत्तीसगढ़ की पुरातन लोक परंपरा का अभिन्न हिस्सा है, जिसे हरेली पर्व पर विशेष रूप से किया जाता है। यह पूर्णतः पुरुष प्रधान नृत्य है, जिसमें मांदल, झांझ, कंजरी, और बांसुरी जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों का उपयोग होता है।

लोक श्रृंगार भारती ने इस लोक नृत्य को पुनर्जीवित कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। इसकी पारंपरिक वेशभूषा, नृत्य शैली और गीत आज भी अपनी मौलिकता बनाए हुए हैं।

राष्ट्रीय चक्रधर समारोह में भी छाया गेड़ी नृत्य

पिछले महीने राष्ट्रीय चक्रधर समारोह में भी इस नृत्य ने खूब प्रशंसा पाई थी, जहाँ राज्यपाल और वित्त मंत्री ने निर्देशक अनिल कुमार गढ़ेवाल को सम्मानित किया था।

लोक श्रृंगार भारती की इस प्रस्तुति ने एक बार फिर से छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति को गौरवान्वित किया है।


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