कार्तिक मास की पवित्र देवउठनी एकादशी पर बिलासपुर में भक्तिभाव के साथ तुलसी और शालिग्राम का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ। इस विशेष अवसर पर श्रद्धालु महिलाओं ने गन्ने के डंठलों से माँ तुलसी का भव्य मंडप सजाया और पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार पूरे विधि-विधान से विवाह की रस्में निभाईं। महिलाएं पारंपरिक परिधानों में सजधज कर पहुंचीं और मंगल गीतों के साथ भक्ति भाव से तुलसी-शालिग्राम के विवाह का आयोजन किया।
श्रद्धालु महिलाओं ने गन्ने से सजाया मां तुलसी का मंडप
इस विवाह में तुलसी माता के मंडप को विशेष रूप से गन्ने के डंठलों, आम और अशोक के पत्तों से सजाया गया, जो भारतीय संस्कृति में पवित्रता और शुभता का प्रतीक माने जाते हैं। मंडप के बीच में तुलसी और शालिग्राम को प्रतिष्ठित किया गया और विवाह की रस्में श्रद्धा पूर्वक निभाई गईं। पूजन में हवन, आरती और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के साथ मंगल गीत गाए गए। इस धार्मिक आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया, सभी ने एकजुट होकर भक्ति भाव से पूजा-अर्चना की।
देवउठनी एकादशी का महत्व
देवउठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। यह एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आती है और माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के जागने के साथ ही इन सभी कार्यों का शुभारंभ होता है। इसलिए इस दिन तुलसी और शालिग्राम के विवाह का आयोजन विशेष रूप से किया जाता है, जो विवाह संस्कार की शुरुआत का प्रतीक है। तुलसी, जिन्हें भगवान विष्णु की परम भक्त मानी जाती हैं, का विवाह शालिग्राम (भगवान विष्णु का स्वरूप) के साथ करवाने का धार्मिक महत्व है। यह विवाह धार्मिक दृष्टि से गृहस्थ जीवन में प्रेम, समर्पण और शुद्धता का प्रतीक है और इसे करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।
धार्मिक आस्था और श्रद्धा का प्रतीक
देवउठनी एकादशी के अवसर पर तुलसी विवाह का आयोजन भारतीय समाज में धार्मिक आस्था और पारंपरिक मूल्य की पहचान है। इस दिन को धार्मिक पर्व के रूप में मनाने से भगवान विष्णु और माँ तुलसी की कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि तुलसी विवाह करने से घर में मांगलिक कार्यों के लिए शुभता का वातावरण बनता है और सभी प्रकार के दोषों का निवारण होता है।
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