सरकंडा क्षेत्र के श्री कृष्णा कॉम्प्लेक्स परिसर में चल रही 9 दिवसीय श्रीमद् देवी भागवत कथा के दूसरे दिन मानस चिंतक पंडित अरुण दुबे जी महाराज ने अपने प्रवचन में भक्तों के समक्ष गहरे आध्यात्मिक और प्रेरक विचार प्रस्तुत किए।
प्रशंसा और संसार का दृष्टिकोण
पंडित जी ने कहा, “संसार में किसी की जरूरत से ज्यादा प्रशंसा करना, डायबिटीज बीमारी के समान है।” उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हमें दासत्व भाव से जीना चाहिए, न कि मेहमान बनकर।
- दासत्व का महत्व:“दुनिया में दास बनकर रहना सीखो, क्योंकि मेहमान कभी स्थाई नहीं होते।”
- जगत जननी के दासत्व को अपनाने का संदेश दिया।
संसार और मृत्यु का गहरा दृष्टांत
पंडित जी ने संसार और मृत्यु को समुद्र के किनारों से तुलना करते हुए समझाया:
- जन्म का किनारा स्पष्ट दिखता है, पर मृत्यु का किनारा अदृश्य रहता है।
- समुद्र की गहराई की तरह, संसार की गहराई और जीवन के अर्थ को समझने के लिए सही दृष्टि और विवेक आवश्यक है।
उन्होंने मीराबाई का उदाहरण देते हुए बताया कि जिनकी कभी आलोचना हुई, आज उनकी प्रशंसा की जाती है। इस तरह संसार के बदलते स्वभाव को रेखांकित किया।
देवी भगवती और भवसागर का संदेश
पंडित जी ने देवी भागवत कथा को नौका का रूप बताते हुए कहा:
“देवी भगवती के भवसागर में बैठने से नैया पार हो जाती है। कथा श्रवण जीवन को सही दिशा और मार्गदर्शन प्रदान करती है।”
भक्तों की उपस्थिति
यह महोत्सव समाजसेवी गौरव और शिल्पी तिवारी परिवार द्वारा आयोजित किया गया है।
- प्रतिदिन दोपहर 2:00 बजे से शाम 8:00 बजे तक बड़ी संख्या में श्रद्धालु कथा का श्रवण करने पहुंच रहे हैं।
- आयोजन स्थल पर भक्तिमय माहौल और श्रद्धालुओं की उत्साही भागीदारी देखी जा रही है।
श्रीमद् देवी भागवत कथा ने श्रद्धालुओं को आत्ममंथन और जीवन के गहरे अर्थ को समझने का अवसर प्रदान किया है।
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