हाईकोर्ट का फैसला: विदेशी मध्यस्थता अवार्ड लागू करने में सार्वजनिक नीति का ध्यान जरूरी

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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने विदेशी मध्यस्थता अवार्ड को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 48 के तहत विदेशी अवार्ड को लागू करने से तब तक इनकार नहीं किया जा सकता, जब तक वह भारत की सार्वजनिक नीति के खिलाफ न हो। यह फैसला स्विट्जरलैंड की कंपनी और रायपुर की महिंद्रा स्पंज एंड पॉवर लिमिटेड कंपनी के बीच कोयला व्यापार विवाद से संबंधित एक मामले में दिया गया।

मामले की पृष्ठभूमि

स्विट्जरलैंड की कंपनी ने मार्च 2020 में महिंद्रा स्पंज एंड पॉवर लिमिटेड के साथ 50,000 मीट्रिक टन कोयले की आपूर्ति का अनुबंध किया था। अनुबंध में शर्त थी कि प्रतिवादी कंपनी को 31 मार्च 2020 तक लेटर ऑफ क्रेडिट (एलसी) खोलना था। एलसी खोलने में विफलता के कारण अनुबंध समाप्त हो गया, और आवेदक कंपनी ने मामले को मध्यस्थता में ले जाकर अपने पक्ष में अवार्ड प्राप्त किया।

प्रतिवादी का दावा

प्रतिवादी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर विदेशी अवार्ड को चुनौती दी। याचिका में कहा गया कि अवार्ड लागू करना भारत की सार्वजनिक नीति के विपरीत है।

हाईकोर्ट का आदेश

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए कहा:

  • धारा 48 का उद्देश्य: इस धारा के तहत विदेशी अवार्ड की समीक्षा केवल सार्वजनिक नीति के आधार पर की जा सकती है, न कि योग्यता पर।
  • सार्वजनिक नीति की सीमा: अवार्ड को लागू करने से इनकार केवल तभी हो सकता है, जब वह भारत की सार्वजनिक नीति के खिलाफ हो।
  • कोविड-19 की परिस्थितियां: कोर्ट ने पाया कि लॉकडाउन के दौरान बैंक और शिपिंग सेवाएं आवश्यक श्रेणी में आती थीं और संचालन में रहीं। प्रतिवादी को समय पर बैंकिंग सेवाओं का उपयोग करना चाहिए था।

निष्कर्ष

हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अवार्ड में भारत की सार्वजनिक नीति का उल्लंघन न होने पर उसे लागू किया जा सकता है। यह फैसला अंतरराष्ट्रीय व्यापार में मध्यस्थता की प्रक्रियाओं और विदेशी अवार्डों की मान्यता पर भारतीय न्यायपालिका के प्रगतिशील दृष्टिकोण को दर्शाता है।


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