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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक 6 साल की बच्ची की गवाही को हत्या के मामले में पर्याप्त और विश्वसनीय साक्ष्य मानते हुए दो आरोपियों की सजा को बरकरार रखा है। जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने कहा कि चश्मदीद बाल गवाह की गवाही की पुष्टि के लिए किसी अन्य सहायक साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती।
मामला क्या था?
उत्तर बस्तर कांकेर के निवासी राज सिंह पटेल ने 13 दिसंबर 2016 को पुलिस को सूचना दी थी कि गांव के मानसाय ने आत्महत्या कर ली है। मामले में मर्ग दर्ज कर जांच शुरू की गई। लेकिन 8 जनवरी 2017 को मृतक की 6 साल की बेटी ने चौंकाने वाला बयान दिया।
बच्ची ने बताया कि आरोपी पंकू ने उसके पिता के पेट में लात मारी और फिर उनकी मां सगोर बाई के स्कार्फ से गला दबाकर कमरे में ले जाकर लटका दिया। उस समय मां चूल्हे के पास बैठी थी और उसने बच्ची को चुप रहने को कहा।
बच्ची की गवाही बनी सबूत का आधार-हाईकोर्ट
बच्ची के बयान के आधार पर पुलिस ने IPC की धारा 302, 201, 34 के तहत हत्या का केस दर्ज किया और दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में चालान पेश किया।
अपर सत्र न्यायाधीश ने बाल गवाह की गवाही को आधार बनाते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई।
आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील की और गवाही की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। साथ ही यह भी कहा गया कि बच्ची का बयान देर से दर्ज किया गया।
हाईकोर्ट का फैसला – बच्ची की आंखों देखी गवाही पर्याप्त

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पीड़िता बच्ची ने घटना अपनी आंखों से देखी थी, और उसने साफ-साफ बयान दिया कि कैसे पंकू और उसकी मां ने मिलकर हत्या की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
“बाल गवाह की सच्ची और स्पष्ट गवाही को पुष्टिकरण की आवश्यकता नहीं होती।”
कोर्ट ने यह भी देखा कि हत्या के समय मां ने अपने पति को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया, जो उसकी संलिप्तता को दर्शाता है।
सुप्रीम कोर्ट जाने की छूट
अंत में, कोर्ट ने आरोपियों की अपील खारिज करते हुए उन्हें विधिक सेवा प्राधिकरण समिति की मदद से सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की छूट दी।
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