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बिलासपुर। प्रदेश के कोल बेस्ड पावर प्लांटों में औद्योगिक प्रदूषण से श्रमिकों के बीमार होने के मामले में हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। मंगलवार को राज्य शासन ने शपथपत्र प्रस्तुत करते हुए जानकारी दी कि प्रदूषण फैलाने वाली 36 कंपनियों को नोटिस जारी किया गया है। साथ ही, कोर्ट कमिश्नर को इन प्लांटों का निरीक्षण करने की अनुमति दी गई है। हालांकि, शासन ने अभी तक इन कंपनियों की सूची प्रस्तुत नहीं की है। इस पर हाईकोर्ट ने विस्तृत जानकारी देने के निर्देश देते हुए सुनवाई बुधवार तक के लिए स्थगित कर दी।
क्या है मामला?
प्रदेश में संचालित कोल आधारित उद्योगों और कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों को सीमेंट और लोहे की धूल से सिलिकोसिस जैसी गंभीर बीमारी हो रही है, जिससे उनके फेफड़े बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। इस गंभीर स्थिति को लेकर उत्कल सेवा समिति, लक्ष्मी चौहान, गोविंद अग्रवाल और अमरनाथ अग्रवाल ने अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से हाईकोर्ट में अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर की हैं। हाईकोर्ट ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई शुरू की है।
कोर्ट कमिश्नरों ने की थी जांच
पूर्व में हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने प्रदेश के उद्योगों का निरीक्षण करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए वकीलों को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था। इन कमिश्नरों ने प्रदेश के विभिन्न संभागों में उद्योगों का दौरा कर प्रदूषण की स्थिति की जांच की थी।
60 से अधिक प्लांटों पर प्रदूषण का संकट
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने कोर्ट को बताया कि राज्य में लगभग 60 स्पंज आयरन और सीमेंट प्लांट ऐसे हैं, जहां से लगातार प्रदूषण की शिकायतें आ रही हैं। इसके बाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने आठ अधिवक्ताओं को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर विस्तृत डाटा रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था।

कोर्ट कमिश्नरों की रिपोर्ट में यह सामने आया कि कई उद्योगों में प्रदूषण रोकने के कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं, जिससे कामगारों में फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां फैल रही हैं। अधिवक्ता प्रतीक शर्मा, अपूर्व त्रिपाठी और संघर्ष पांडेय सहित अन्य अधिवक्ताओं ने प्रदेश के विभिन्न जिलों में संचालित सीएफटीपीपी का दौरा कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
हाईकोर्ट ने राज्य शासन को इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। मामले की अगली सुनवाई आज होगी।
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