🪔 “उस घर का आख़िरी दीप” 🪔
गाँव उसकर की पगडंडी पर एक पुराना घर है —कभी वहाँ दीपावली की रातें तारे बनकर उतर आती थीं।आँगन में माँ दिया जलाते हुए कहती थीं,“दीया सिर्फ़ तेल से नहीं, यादों से भी जलता है बेटा।”और पिता तुलसी चौरे के पास मिट्टी का दीप रखते हुए उच्चारण करते —“यह यमदीप मृत्यु नहीं, अधर्म…
सोने-चाँदी नहीं, बच्चों की वापसी बनी हमारी असली धनतेरस
— डॉ. एस. के. मिश्रा धनतेरस की भोर थी। आसमान में हल्की गुलाबी रोशनी तैर रही थी, और पूरे मोहल्ले में उत्सव की सुगंध घुली हुई थी। बाजारों में चाँदी की खनक और दीयों की झिलमिलाहट थी, लेकिन हमारे घर की प्रतीक्षा किसी और चीज़ की थी — अपने बच्चों की। सुबह जैसे…