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– डॉ. शिव कृपा मिश्र
ग्राम उसकर, जिला बलिया।
यह वही मिट्टी है, जहां से एक ऐसे वटवृक्ष ने जन्म लिया, जिसकी छाया आज चार दिशाओं में फैल चुकी है। इस वटवृक्ष का नाम था पंडित श्री श्रीरंग मिश्र—संस्कार, परिश्रम और त्याग की सजीव मूर्ति। आज वे भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, पर उनके आदर्श, उनकी सीख, उनकी वाणी का प्रकाश आज भी उनके चारों पुत्रों के जीवन में दीप बनकर जल रहा है।
बाबूजी अक्सर कहा करते थे—
“यदि मेरे किए गए पुण्य का आधा भी मेरे बच्चे कर लें,
तो वे मुझसे दोगुना पुण्य अर्जित करेंगे,
और तब परिवार ही नहीं, समाज भी उजाला पाएगा।”
आज उनके ये शब्द साकार हो चुके हैं।
पुलिस सेवा में पाँच वर्षों तक अनुशासन की मिसाल पेश करने के बाद, उन्होंने गांधी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, रामपुर कानून गोयान के प्रधानाचार्य के रूप में शिक्षा जगत में अपना नाम अमिट किया। जिस विद्यालय में वे कार्यरत रहे, उसके भवन के निर्माण हेतु उन्होंने लोगों से एक-एक रुपया जुटाकर वह कार्य पूरा कराया—जो केवल एक प्रधानाचार्य नहीं, बल्कि समाज-सेवक का परिचायक था।
समय के साथ उनकी कर्मभूमि भले ही शून्य में विलीन हो गई, पर उनके कर्मों की गूंज आज भी सुनाई देती है—
उनके ही पुण्य प्रताप से आज परिवार में छः सरकारी शिक्षक और एक विश्वविद्यालय में अध्यापनरत संतान समाज को ज्ञान की ज्योति से आलोकित कर रहे हैं।
गांव उसकर के उस घर की दीवारें, जो कभी बाबूजी और माता श्रीमती शांति देवी के स्नेह से गूंजती थीं, आज नई पीढ़ी की हंसी से महक रही हैं। वही घर—जो कभी मिट्टी की गंध से भरा था—आज सुंदरता और गरिमा से खड़ा है। उस घर से निकली दिव्य ज्योति अब बड़हलगंज, वाराणसी, मऊ नाथ भंजन और छत्तीसगढ़ के बिलासपुर तक अपने तेज से जगमगा रही है।
दीपावली की इस पावन बेला पर जब घर-घर दीपक जलेंगे,
तो निश्चित ही बाबूजी और माताजी स्वर्ग से मुस्कुराते हुए कहेंगे—
“हमारे संस्कार व्यर्थ नहीं गए।
हमारे चारों पुत्र हमारे वटवृक्ष की जड़ों को सींच रहे हैं,
वंश परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं,
और वही उजियारा फैला रहे हैं,
जिसका दीप हमने कभी जलाया था…”

आज उसकर के आकाश में एक अलौकिक रोशनी है —
जो केवल दीपों की नहीं,
बल्कि एक पिता के सपनों की उजियारी है,
जो पीढ़ियों तक बुझने वाली नहीं।
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