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कलयुग की चुनौती और वरदान
कलयुग—जिसे पाप, विकृति और भ्रम का युग माना जाता है—हमारे सामने एक जटिल यथार्थ प्रस्तुत करता है। मानवता को अपने राग, द्वेष, क्रोध और इच्छाओं के जाल में उलझते देखना स्वाभाविक है। यही कारण है कि लोग अक्सर सतयुग, त्रेता या द्वापर जैसे “पवित्र” युगों की कल्पना करते हैं और कहते हैं, “काश, हम उन युगों में पैदा हुए होते।”
लेकिन क्या यह कल्पना सच में व्यावहारिक है? गोस्वामी तुलसीदास ने रामायण में कहा:
“कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा।”
तुलसीदास के ये शब्द इस तथ्य को उजागर करते हैं कि कलियुग अपने दोषों के बावजूद, मोक्ष प्राप्ति का सबसे सरल मार्ग प्रदान करता है।
नाम जप: आसान, लेकिन प्रभावशाली
भक्ति की परंपरा में नाम जप को सबसे प्रभावी और सहज साधन माना गया है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठानों या जटिल विधियों पर आधारित नहीं है। नाम जप में कोई स्थान, समय, या परिस्थिति की पाबंदी नहीं है। इसे आप कहीं भी, किसी भी अवस्था में कर सकते हैं।
नाम जप का यह महत्व क्यों है? यह इसलिए कि इसमें केवल शब्द नहीं, बल्कि भाव निहित है।
शास्त्रों में अजामिल की कथा इसका सटीक उदाहरण है। मरते समय उसने अपने पुत्र “नारायण” को पुकारा, और यह पुकार उसे ईश्वर के चरणों तक ले गई। गजराज ने डूबते समय “रा” का उच्चारण किया, और भगवान ने उसकी प्रार्थना सुन ली।
नाम जप आत्मा का दर्पण है। यह आपके हृदय की गहराइयों को साफ करता है और आपको आपके सच्चे स्वरूप से परिचित कराता है।
अतीत के कठिन मार्गों से तुलना
अगर सतयुग, त्रेता, और द्वापर में देखें, तो मोक्ष प्राप्ति के मार्ग बहुत कठिन थे। ध्यान, तपस्या, और यज्ञ जैसे उपाय केवल विरले ही कर पाते थे।
उदाहरण के लिए, वाल्मीकि जैसे डाकू ने जब नाम जप को अपनाया, तब भी उसे “राम” को उल्टा “मरा” के रूप में जपना पड़ा। इसके बाद ही वह ब्रह्म समान बन सके।
लेकिन कलयुग में यह प्रक्रिया कहीं अधिक सरल है। यहां आपको तपस्या के स्थान पर प्रेम, ध्यान और नाम स्मरण की आवश्यकता है।
नाम जप की सार्वभौमिकता
नाम जप की महिमा किसी एक धर्म या परंपरा तक सीमित नहीं है। कबीर, तुलसीदास, मीरा, रैदास, और नानक जैसे संतों ने इसे आत्मा की सबसे प्रभावी औषधि माना है। यह वह मार्ग है, जहाँ विविध संप्रदाय एकमत हो जाते हैं।
धन्वंतरि जैसे वैद्य इसे औषधि बताते हैं, जो सभी मानसिक और शारीरिक रोगों को हर सकती है।
लेकिन सावधानी भी जरूरी है
नाम जप को जीवन का आधार बनाना जितना सरल है, उतना ही आवश्यक है कि इसे सही भावना से किया जाए। केवल नाम जपने से पाप धुल जाएंगे—यह मान्यता अधूरी है।
पापों के प्रति पश्चाताप, उन्हें न दोहराने का संकल्प और नाम जप के प्रति सच्चा प्रेम अनिवार्य है।
यह भी समझना होगा कि नाम जप क्रोध, राग, और द्वेष जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों को धीरे-धीरे समाप्त करता है। जबरदस्ती इन प्रवृत्तियों को हटाने की कोशिश न करें; बस प्रेमपूर्वक नाम जपते रहें।
कलयुग की महिमा और अवसर
कलयुग को कोसना आसान है, लेकिन इसके भीतर छिपे वरदान को समझना उतना ही महत्वपूर्ण है। तुलसीदास के शब्दों में, यह युग सबसे सरल मार्ग प्रस्तुत करता है। हमें चाहिए कि हम इस युग की विशेषता को पहचानें और इसे अपनाएं।
नाम जप न केवल मोक्ष का माध्यम है, बल्कि यह हमारे जीवन की जटिलताओं का समाधान भी है। यह हमें आत्मा की गहराई तक ले जाता है और बाहरी दिखावे से परे हमारी सच्चाई को प्रकट करता है।
निष्कर्ष: नाम जप, एक अमोघ उपाय
आज के समय में, जब संसार में भ्रम, तनाव और अशांति है, नाम जप हमें वह स्थिरता प्रदान करता है जिसकी हमें सख्त जरूरत है।
“नाम स्मरण के साथ हृदय का योग हो, तो यह न केवल आत्मा को शुद्ध करता है, बल्कि जीवन को भी सार्थक बना देता है।”
यह समय है कि हम इस सरल, लेकिन प्रभावशाली साधन को अपनाएं और अपने जीवन को ऊंचाई दें।
रतनपुर स्थित सिद्ध तंत्र पीठ श्री भैरव मंदिर के मंदिर एवं ज्योतिषाचार्य पंडित जागेश्वर अवस्थी
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