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बिलासपुर डीईओ ने बिना काउंसलिंग की पोस्टिंग, हाईकोर्ट ने लगाई रोक
बिलासपुर। जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) द्वारा नियमों की अनदेखी करते हुए कुछ सहायक शिक्षकों को काउंसलिंग प्रक्रिया के बिना हेडमास्टर पद पर नियुक्त कर दिया गया। इस निर्णय के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इस नियुक्ति आदेश पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने राज्य सरकार और अन्य संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर 24 मार्च 2025 तक जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
काउंसलिंग प्रक्रिया की अनदेखी पर सवाल
शिक्षा विभाग के नियमानुसार, सहायक शिक्षकों को हेडमास्टर पद पर पदोन्नति के लिए काउंसलिंग प्रक्रिया से गुजरना अनिवार्य है। लेकिन बिलासपुर जिले में इस प्रक्रिया को दरकिनार कर शिक्षकों को सीधे नियुक्त कर दिया गया। याचिकाकर्ता शिक्षक हलधर प्रसाद साहू और अन्य ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।
याचिकाकर्ताओं के वकील अश्वनी शुक्ला ने कोर्ट को बताया कि प्रमोशन के बाद शिक्षकों को उनके स्कूल या किसी अन्य स्कूल में पदस्थापना देने से पहले काउंसलिंग प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। लेकिन याचिकाकर्ताओं को बिना काउंसलिंग सीधे कोटा और मस्तूरी क्षेत्र के स्कूलों में हेडमास्टर के पद पर भेज दिया गया।
राज्य सरकार के सर्कुलर का उल्लंघन
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि राज्य सरकार ने 7 फरवरी 2022 को एक सर्कुलर जारी किया था। इसके अनुसार, यदि किसी स्कूल में पद रिक्त हो, तो प्रमोशन प्राप्त शिक्षकों को उसी स्कूल में पदस्थापना दी जानी चाहिए। इसके बावजूद याचिकाकर्ताओं के स्कूलों में पद रिक्त होते हुए भी उन्हें अन्य स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया गया।
हाईकोर्ट ने लगाई रोक, दिए निर्देश
इस मामले की सुनवाई जस्टिस अमरेंद्र किशोर प्रसाद की सिंगल बेंच में हुई। कोर्ट ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए शिक्षकों को उनके पूर्व पदस्थापित विद्यालयों में कार्य करने की अनुमति दी है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि राज्य सरकार इस मामले में 24 मार्च 2025 तक जवाब प्रस्तुत करे।
आगे की सुनवाई 2 अप्रैल को
हाईकोर्ट ने जिला शिक्षा विभाग की कार्रवाई पर गंभीर टिप्पणी करते हुए इसे नियम विरुद्ध करार दिया। मामले की अगली सुनवाई 2 अप्रैल 2025 को होगी, जिसमें राज्य सरकार और अन्य पक्षकारों का जवाब प्रस्तुत किया जाएगा।
शिक्षा विभाग में सुधार की जरूरत
इस घटना ने शिक्षा विभाग में काउंसलिंग प्रक्रिया और नियमों के पालन की कमी को उजागर किया है। कोर्ट के इस आदेश ने न केवल प्रभावित शिक्षकों को राहत दी है, बल्कि विभाग को अपने कार्यप्रणाली में सुधार करने का भी संकेत दिया है।
निष्कर्ष:
हाईकोर्ट का यह फैसला शिक्षा विभाग में पारदर्शिता और नियमों के पालन की आवश्यकता को दोहराता है। यह मामला भविष्य में इस प्रकार की नियुक्तियों में नियमों के अनुपालन की अहमियत को रेखांकित करेगा।
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