नेशनल हाइवे पर अधिक मुआवजा पाने के लिए जमीन को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर बटांकन कराने की प्रथा पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। इस मामले में डिवीजन बेंच ने एक याचिका खारिज करते हुए इसे अवैध करार दिया। इससे पहले सिंगल बेंच ने भी इसे अनुचित ठहराया था।
मुआवजा निर्धारण के दो स्लैब
प्रदेश में मुआवजा देने के लिए दो श्रेणियां हैं:
- प्रति वर्ग मीटर के आधार पर।
- प्रति हेक्टेयर की दर से।
जब भूमि स्वामियों को यह जानकारी मिली कि राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के लिए उनकी जमीन अधिग्रहित की जाएगी, तो उन्होंने अपनी भूमि को छोटे टुकड़ों में बांटकर प्रति वर्ग मीटर की दर से अधिक मुआवजा पाने का दावा किया।
मामले का विवरण
चिरमिरी के हल्दीबाड़ी निवासी पूनम सेठी ने बिलासपुर के सकरी में नेशनल हाइवे-130 पर स्थित 490 वर्गमीटर जमीन खरीदी थी। रजिस्ट्री के समय स्टाम्प शुल्क वर्ग मीटर के आधार पर लगा था। बाद में, जब फोरलेन सड़क निर्माण के लिए भूअर्जन प्रक्रिया शुरू हुई, तो अधिक मुआवजा पाने के लिए जमीन को छोटे टुकड़ों में विभाजित कर बटांकन कराया गया।
पटवारी की रिपोर्ट और भूअर्जन अधिकारी का फैसला
भूअर्जन अधिकारी ने 1 जुलाई 2018 को पटवारी से मुआवजे के आकलन के लिए रिपोर्ट मांगी। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि जमीन को अवैध तरीके से छोटे टुकड़ों में विभाजित किया गया था। इसके आधार पर अधिकारी ने मुआवजा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से तय किया।
हाईकोर्ट का निर्णय
- फैसला: हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जमीन को छोटे हिस्सों में बांटकर अधिक मुआवजा पाने का प्रयास अवैध है।
- कार्रवाई: मूल खसरा संख्या 310 को छह खसरों (310/12, 310/13, 310/10, 310/11, 310/8, और 310/9) में अवैध रूप से बांटा गया था।
- निर्णय का आधार: राजस्व अधिकारी ने इस बंटवारे को कानून सम्मत नहीं पाया और प्रति हेक्टेयर के स्लैब को सही ठहराया।
न्यायालय का संदेश
हाईकोर्ट ने इस प्रकार की घटनाओं को समाज और प्रशासन के लिए अनुचित बताते हुए कहा कि भूमि स्वामियों द्वारा अवैध लाभ के प्रयास को किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
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