छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में राज्य वन विकास निगम लिमिटेड द्वारा लागू की गई बांड शर्तों को असंवैधानिक और अनुचित घोषित किया है। कोर्ट ने इन शर्तों को “अनुचित, दमनकारी और असंवैधानिक” बताते हुए भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए इन्हें निरस्त कर दिया।
यह मामला रणवीर सिंह और अन्य वन कर्मचारियों द्वारा दायर याचिका से संबंधित था, जिसमें कर्मचारियों ने छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम द्वारा अनिवार्य सर्विस बांड की शर्तों को चुनौती दी थी। इन शर्तों के अनुसार, सहायक परियोजना रेंजर के रूप में नियुक्त 20 कर्मचारियों को छह महीने का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद कम से कम पांच वर्षों तक निगम में काम करना अनिवार्य था। यदि कर्मचारी इस अवधि में छोड़ते तो उन्हें प्रशिक्षण खर्च, वेतन और भत्ते का भुगतान करना पड़ता और अतिरिक्त अनुमानित आय भी चुकानी पड़ती।
शासन का तर्क
शासन ने अपनी तरफ से यह तर्क दिया कि कर्मचारियों के पलायन और निगम को होने वाले वित्तीय नुकसान को रोकने के लिए बांड शर्तें जरूरी थीं।
कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने शर्तों को एकतरफा और कर्मचारियों के पक्ष में न होने के कारण निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई कर्मचारी प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हो, तो निगम को प्रशिक्षण खर्च वसूलने का अधिकार है, लेकिन पांच वर्षों तक की वेतन और अनुमानित आय का भुगतान कर्मचारी पर डालना अनुचित है। कोर्ट ने इसे शोषणकारी और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (जी) (किसी भी पेशे का अभ्यास करने का अधिकार) और 23 (ए) (जबरी श्रम के निषेध) का उल्लंघन माना।
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि बांड की शर्तें न केवल कर्मचारियों पर अनुचित दबाव डालने वाली थीं, बल्कि यह न्याय और सार्वजनिक नीति के सिद्धांतों के खिलाफ भी थीं।
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