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बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि छठे वेतन आयोग योजना के अंतर्गत 2006 से पहले सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों को भी पेंशन लाभ का भुगतान सुनिश्चित किया जाए। जस्टिस राकेश मोहन पांडे की एकल पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का संदर्भ देते हुए कहा कि पेंशनभोगियों को दो श्रेणियों में विभाजित करने का कोई वैध औचित्य नहीं है।
मध्य प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 की धारा 49 के अनुसार, दोनों राज्यों को पेंशन भुगतान की देयता साझा करनी होगी। कोर्ट ने राज्य सरकार को 120 दिनों के भीतर संशोधित पेंशन जारी करने का निर्देश दिया है।
पेंशन भोगियों के भेदभाव के खिलाफ छत्तीसगढ़ शासकीय महाविद्यालयीन पेंशनर्स संघ की याचिका
छत्तीसगढ़ शासकीय महाविद्यालयीन पेंशनर्स संघ, जो सरकारी महाविद्यालयों के पेंशनभोगियों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक पंजीकृत संस्था है, ने 1 जनवरी 2006 से पहले सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों के साथ हो रहे भेदभाव को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 2006 के बाद सेवानिवृत्त कर्मचारियों को छठे वेतन आयोग का लाभ दिया गया, जबकि इससे पहले सेवानिवृत्त हुए उनके समकक्षों को इससे वंचित रखा गया, जो अनुचित भेदभाव है।
पहले भी इस मुद्दे को लेकर एक याचिका दायर की गई थी, जिसे हाईकोर्ट ने 25 जनवरी 2018 को निरस्त कर दिया था और संबंधित कर्मचारियों को राज्य शासन के समक्ष अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। हालांकि, छत्तीसगढ़ सरकार के वित्त विभाग ने 28 फरवरी 2018 को इन अभ्यावेदनों को खारिज कर दिया, जिससे पेंशनर्स संघ को दोबारा याचिका दायर करनी पड़ी।
पेंशन में भेदभाव पर सवाल, सरकार ने वित्तीय बोझ का दिया तर्क
याचिका में सवाल उठाया गया कि क्या राज्य सरकार पेंशनभोगियों को छठे वेतन आयोग का लाभ देने में दो श्रेणियों में वर्गीकृत कर सकती है। 2006 से पहले और बाद में सेवानिवृत्त होने के आधार पर किया गया यह वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन बताया गया।
छत्तीसगढ़ शासन ने तर्क दिया कि 2006 से पहले रिटायर हुए कर्मचारियों को लाभ देने से राज्य के वित्तीय संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। साथ ही, राज्य सरकार ने अधिनियम की धारा 49 का हवाला देते हुए कहा कि पेंशन भुगतान की देयता छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के बीच साझा की जानी चाहिए।
सुनवाई में दिए गए तर्क

याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि मनमाने कट-ऑफ तिथि के आधार पर पेंशनभोगियों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। उन्होंने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें भेदभावपूर्ण पेंशन वर्गीकरण को खारिज कर दिया गया था।
वहीं, छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता ने वित्तीय बाधाओं का तर्क देते हुए इस नीति को उचित ठहराने की कोशिश की। केंद्र सरकार के वकील ने भी इस तर्क का समर्थन किया।
कोर्ट का निर्णय
कोर्ट ने कहा कि पेंशन भुगतान में किसी भी प्रकार का भेदभाव अनुचित है और राज्य सरकारों को छठे वेतन आयोग के अनुसार सभी पात्र पेंशनभोगियों को समान लाभ देना होगा। साथ ही, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार को 120 दिनों के भीतर संशोधित पेंशन जारी करने का निर्देश दिया गया है।
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