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बस्तर के दरभा क्षेत्र से संबंधित एक मामले में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने गुरुवार को एक ईसाई व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इस याचिका में उसने अपने मृत पिता का अंतिम संस्कार गांव के आम कब्रिस्तान में करने के लिए अनुमति और पुलिस सुरक्षा की मांग की थी। हाईकोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि ऐसा करना गांव में शांति भंग कर सकता है, और इस तरह की अनुमति देना उचित नहीं होगा।
विवाद की शुरुआत: अंतिम संस्कार को लेकर ग्रामीणों ने जताई आपत्ति
याचिका में दावा किया गया था कि 7 जनवरी 2025 को याचिकाकर्ता रमेश बघेल के पिता का वृद्धावस्था के कारण निधन हो गया था। इसके बाद याचिकाकर्ता और उनके परिवार ने उनके पिता का अंतिम संस्कार गांव के आम कब्रिस्तान में स्थित ईसाई क्षेत्र में करने की योजना बनाई। हालांकि, इस बात की जानकारी मिलने के बाद कुछ ग्रामीणों ने इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने न केवल अंतिम संस्कार की अनुमति देने का विरोध किया, बल्कि याचिकाकर्ता और उनके परिवार को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी। आरोप है कि जब विरोध और हिंसा बढ़ी, तो याचिकाकर्ता के परिवार ने पुलिस को रिपोर्ट किया, लेकिन पुलिस ने दबाव डालते हुए परिवार को शव को गांव से बाहर ले जाने की धमकी दी।
हाईकोर्ट में याचिका: कब्रिस्तान के नियमों पर विचार
याचिकाकर्ता ने इसके बाद उच्च न्यायालय का रुख किया और छत्तीसगढ़ ग्राम पंचायत नियम, 1999 के तहत अपने मृत पिता का अंतिम संस्कार सुरक्षित रूप से कराए जाने की मांग की। याचिका में यह भी कहा गया कि ग्राम पंचायत का कर्तव्य है कि वह मृतक के धर्म के अनुसार शवों के निपटान के लिए सुविधाएं प्रदान करे।
हाईकोर्ट का फैसला: अलग कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार उचित
सुनवाई के दौरान उप महाधिवक्ता ने अदालत को सूचित किया कि छत्तीसगढ़ के ग्राम छिंदवाड़ा में ईसाइयों के लिए कोई अलग कब्रिस्तान नहीं है। हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि यदि याचिकाकर्ता अपने पिता का अंतिम संस्कार गांव छिंदवाड़ा से 20-25 किलोमीटर दूर स्थित करकापाल गांव में कर लें, जहां ईसाईयों के लिए एक अलग कब्रिस्तान उपलब्ध है, तो इस पर कोई आपत्ति नहीं की जाएगी।
कोर्ट ने इस मामले में छत्तीसगढ़ ग्राम पंचायत नियम, 1999 का गहन विश्लेषण किया, जिसमें शव के निपटान के लिए निश्चित प्रावधान और जिम्मेदारी ग्राम पंचायत पर डाली गई है। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी शव को दफनाने की अनुमति केवल उस विशेष स्थान पर दी जा सकती है, जो इसके लिए निर्धारित किया गया हो।
कब्रिस्तान से संबंधित कानूनी दृष्टिकोण
न्यायालय ने जगदीश्वरी बनाम बी. बाबू नायडू मामले में मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय का हवाला देते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि शव को किसी भी स्थान पर दफनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती, यदि वह स्थान निर्दिष्ट भूमि नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि ईसाई धर्म के अनुयायियों के लिए एक अलग कब्रिस्तान पास में उपलब्ध है, इसलिए याचिकाकर्ता के लिए वहां शव दफनाना उचित होगा।
याचिका का निष्कर्ष
अंतिम में, कोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता की याचिका को निरस्त कर दिया और आदेश दिया कि मृतक का अंतिम संस्कार पास के ईसाई कब्रिस्तान में ही किया जाए। अदालत का यह निर्णय स्थानीय शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
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