6.5 लाख मुआवजा देने या कठोर कारावास का आदेश
हाईकोर्ट ने चेक बाउंस के एक मामले में 19 साल बाद दोषी करार देते हुए सख्त फैसला सुनाया है। कोर्ट ने चेक जारीकर्ता को 6.5 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया है। भुगतान न करने पर कठोर कारावास की सजा भुगतनी होगी।
इससे पहले सिविल न्यायालय ने आरोपी को दोषमुक्त कर दिया था, लेकिन हाईकोर्ट ने निचली अदालत का फैसला रद्द करते हुए आरोपी को दोषी ठहराया।
विवाद: तीन दुकानें बेचने का सौदा
रायपुर निवासी अपीलकर्ता गुलाम मोहम्मद ने बैजनाथ पारा स्थित अपनी तीन दुकानें कटोरा तालाब निवासी युसूफ को 28 लाख रुपए में बेचीं। समझौते के तहत 10 लाख रुपए अग्रिम भुगतान किया गया और शेष राशि तीन किश्तों में चुकाने पर सहमति बनी।
6 अगस्त 2005 को बिक्री पंजीकृत होने के बाद खरीदार ने पहली किश्त के रूप में 6 लाख रुपए का चेक जारी किया। बाकी 12 लाख रुपए दो किश्तों में देने का वादा किया गया।
चेक बाउंस: दो बार हुई अस्वीकृति
- 21 सितंबर 2005 को शिकायतकर्ता गुलाम मोहम्मद ने चेक बैंक में जमा किया। चेक “भुगतान रोक” के कारण अस्वीकृत हो गया।
- 24 नवंबर 2005 को विक्रेता ने फिर चेक जमा किया, लेकिन यह फिर से बाउंस हो गया।
बैंक ने विक्रेता को चेक बाउंस की लिखित सूचना दी, जिसके बाद कानूनी नोटिस भेजा गया।
मजिस्ट्रेट कोर्ट ने किया था बरी
विक्रेता गुलाम मोहम्मद ने चेक बाउंस के खिलाफ न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के समक्ष शिकायत दर्ज कराई।
मजिस्ट्रेट ने 24 दिसंबर 2009 को मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर आरोपी को दोषमुक्त कर दिया।
हाईकोर्ट में अपील: दोषी करार
मजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की गई। जस्टिस रजनी दुबे की सिंगल बेंच ने सुनवाई के दौरान पाया कि –
- खरीदार ने चेक जारी करने और हस्ताक्षर करने की बात स्वीकार की।
- शिकायतकर्ता ने चेक दो बार बैंक में प्रस्तुत किया और दोनों बार वह बाउंस हो गया।
- चेक बाउंस के बाद कानूनी नोटिस भी भेजा गया, जिसे आरोपी ने रिसीव किया।
हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट कोर्ट के निर्णय को रद्द करते हुए खरीदार को परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के तहत दोषी करार दिया।
कोर्ट का आदेश: 6 महीने में भुगतान या कारावास
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी को 6 महीने के भीतर 6.5 लाख रुपए का मुआवजा देना होगा। यदि भुगतान नहीं किया जाता है तो आरोपी को कठोर कारावास की सजा भुगतनी होगी।
सीआरपीसी की धारा 357(3) के तहत दिए गए इस आदेश को महत्वपूर्ण फैसला माना जा रहा है।
यह फैसला चेक बाउंस के मामलों में एक कड़ा संदेश देता है कि चेक जारी करने की जिम्मेदारी से बचा नहीं जा सकता।
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