👇 खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं
महाकुंभ मेला हिंदू धर्म का एक प्रमुख और विशाल धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 वर्षों में चार प्रमुख स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में आयोजित किया जाता है। यह मेला लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक पवित्र और आध्यात्मिक अनुभव का प्रतीक है, जहां वे पवित्र संगम में स्नान करके अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं। इस साल का महाकुंभ मेला विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह 144 वर्षों के बाद हो रहा है, और इसका खगोलीय महत्व अत्यधिक है। आइए जानें महाकुंभ के बारे में विस्तार से।
महाकुंभ और पूर्ण कुंभ का संबंध
महाकुंभ का आयोजन 12 पूर्ण कुंभों के बाद किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि हर 12 वर्षों में एक पूर्ण कुंभ मेला आयोजित होता है, और इसके बाद, जब कुल 12 पूर्ण कुंभ संपन्न हो जाते हैं, तब महाकुंभ मेला मनाया जाता है। इस आयोजन के दौरान ग्रहों का ऐसा दुर्लभ संयोग होता है, जो महाकुंभ को और भी खास बनाता है।
महाकुंभ का विशेष महत्व
महंत हरिचैतन्य ब्रह्मचारी, टिकरमाफी आश्रम के प्रमुख, ने कहा कि इस महाकुंभ के विशेष होने का कारण ग्रहों की स्थिति है, जो समुंदर मंथन के पौराणिक घटनाक्रम से जुड़ी हुई है। प्राचीन शास्त्रों में वर्णित है कि अमृत मंथन के बाद देवों और असुरों के बीच अमृत प्राप्ति के लिए युद्ध हुआ था। जयंती (इंद्र के पुत्र) ने अमृत कलश को ले लिया था, और इसे सुरक्षित रखने के लिए चार देवताओं को विभिन्न कर्तव्यों के तहत जिम्मेदारी दी गई थी। सूर्य को कलश को पकड़ने का कार्य, चंद्रमा को अमृत न गिरने देने का, गुरु (बृहस्पति) को जयंती को असुरों से बचाने का, और शनिदेव को किसी भी विवाद के समाधान के लिए मध्यस्थ बनने का कार्य सौंपा गया था।
इस समय की घटना के बाद, देवताओं ने अमृत कलश को हरिद्वार लाया और फिर प्रयाग में। यहाँ पर देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष इतना बढ़ गया था कि यह तय था कि असुर अमृत कलश को प्राप्त कर लेंगे। ऐसे में सूर्य, चंद्रमा, शनिदेव और गुरु को तत्काल वहां भेजा गया। उस समय एक दुर्लभ खगोलीय स्थिति बनी थी। “तब सभी चार ऋषियों ने, जिनमें सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार, प्रयाग में ही डेरा डाला था। यही वह समय था जब कुंभ की अवधारणा की शुरुआत हुई,” महंत ने बताया।
महाकुंभ का इतिहास
महाकुंभ का इतिहास अत्यंत प्राचीन और रोचक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाकुंभ उन पवित्र स्थानों पर आयोजित होता है जहां समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश से अमृत की बूंदें गिरी थीं। ये स्थान हैं – प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक।
कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन से अमृत कलश प्राप्त हुआ, तो देवताओं और असुरों के बीच उसे पाने के लिए घोर युद्ध छिड़ गया। इस स्थिति से अमृत की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत कलश को देवताओं के पक्ष में सुरक्षित किया। उन्होंने अमृत कलश जयंत को सौंपा, जिन्होंने कौवे का रूप लेकर राक्षसों से अमृत को बचाया। अमृत कलश को ले जाते समय इसकी बूंदें चार स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक – पर गिरीं। यही कारण है कि इन स्थानों को विशेष पवित्रता और आध्यात्मिक महत्व प्राप्त है और यहां कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
महाकुंभ के प्रकार
महाकुंभ मेला के विभिन्न प्रकार होते हैं, जिनकी अवधि अलग-अलग होती है। ये हैं:
- कुंभ मेला (हर 4 साल में एक बार): जब गुरु ग्रह मेष राशि में होता है और सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं।
- अर्ध कुंभ मेला (हर 6 साल में एक बार): यह मेला हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है।
- पूर्ण कुंभ मेला (हर 12 साल में एक बार): यह महाकुंभ से कम महत्वपूर्ण होता है, लेकिन फिर भी बहुत बड़ी धार्मिक महत्वता रखता है।
- महाकुंभ मेला (हर 144 साल में एक बार): यह सबसे बड़ा और विशेष मेला है, जब ग्रहों की स्थिति अद्वितीय होती है और यह मेला केवल 144 वर्षों में एक बार आयोजित होता है।
144 वर्षों बाद आ रहा महाकुंभ मेला
महाकुंभ 2025 का आयोजन 144 वर्षों के बाद हो रहा है। इसका खगोलीय महत्व बहुत बड़ा है, क्योंकि इस बार ग्रहों की स्थिति विशेष रूप से दुर्लभ और शुभ है। महंत हरिचैतन्य ब्रह्मचारी के अनुसार, इस बार सूर्य, चंद्रमा, गुरु और शनि ग्रहों की स्थिति ऐसी है कि यह महाकुंभ पिछले 144 वर्षों में कभी नहीं हुआ।
यह विशेष संयोग समुंदर मंथन के दौरान देवों और असुरों के बीच हुए संघर्ष से जुड़ा हुआ है, और इसमें ‘पुष्य नक्षत्र’ का भी संयोग है। इस संयोग के कारण यह महाकुंभ मेला पिछले महाकुंभों से अधिक महत्व रखता है।
महाकुंभ के दौरान शाही स्नान की तिथियाँ
महाकुंभ मेला में विशेष स्नान की तिथियाँ होती हैं, जिन पर लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान करते हैं। इन तिथियों पर पवित्र डुबकी लगाने से भक्तों को पुण्य की प्राप्ति होती है। 2025 के महाकुंभ मेला में शाही स्नान की प्रमुख तिथियाँ निम्नलिखित हैं:
- 13 जनवरी 2025: पौष पूर्णिमा स्नान (उद्घाटन दिवस)
- 15 जनवरी 2025: मकर संक्रांति स्नान
- 29 जनवरी 2025: माघ अमावस्या स्नान (शाही स्नान)
- 3 फरवरी 2025: बसंत पंचमी स्नान (शाही स्नान)
- 12 फरवरी 2025: माघ पूर्णिमा स्नान
- 26 फरवरी 2025: महाशिवरात्रि स्नान (समापन दिवस)
इन तिथियों पर प्रयागराज में लाखों श्रद्धालुओं का जमावड़ा होगा, और यह तिथियाँ कुंभ के सबसे महत्वपूर्ण और भीड़-भाड़ वाली तिथियाँ मानी जाती हैं।
सरकार द्वारा दी गई सुविधाएँ
महाकुंभ मेला आयोजन को सफल बनाने के लिए सरकार ने कई महत्वपूर्ण सुविधाएँ प्रदान की हैं। ये सुविधाएँ सुनिश्चित करती हैं कि श्रद्धालु आसानी से मेला क्षेत्र में आ-जा सकें और उनकी यात्रा सुरक्षित और सुविधाजनक हो। प्रमुख सुविधाएँ निम्नलिखित हैं:
- स्वास्थ्य सुविधाएँ: मेला क्षेत्र में स्वास्थ्य शिविर लगाए गए हैं, जहाँ श्रद्धालुओं को प्राथमिक उपचार और चिकित्सा सेवाएं मिलती हैं।
- यातायात और परिवहन: मेला क्षेत्र में विशेष परिवहन सेवाएँ, बसें, और ट्रेनें चलाई जाती हैं ताकि श्रद्धालु आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंच सकें।
- सुरक्षा व्यवस्था: पुलिस और सुरक्षा बलों की तैनाती की जाती है ताकि श्रद्धालुओं को सुरक्षा प्रदान की जा सके।
- स्वच्छता: मेला क्षेत्र में स्वच्छता बनाए रखने के लिए विशेष कदम उठाए जाते हैं और सफाई कर्मचारियों की व्यवस्था की जाती है।
- ऑनलाइन जानकारी: श्रद्धालु kumbh.gov.in वेबसाइट पर जाकर मेला क्षेत्र में उपलब्ध सुविधाओं और यात्रा संबंधी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
अगला महाकुंभ मेला
महाकुंभ 2025 में आयोजित किया गया है, जो 144 वर्षों में एक बार आया है। इसका मतलब है कि अगला महाकुंभ 2169 में होगा। लेकिन पूर्ण कुंभ मेले की बात करें, तो यह हर 12 साल में आयोजित होता है। 2025 के बाद, अगला पूर्ण कुंभ मेला 2037 में आयोजित किया जाएगा।
निष्कर्ष
महाकुंभ 2025 का आयोजन एक ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है। यह मेला 144 वर्षों के बाद एक विशेष खगोलीय स्थिति के कारण हो रहा है, और इसके परिणामस्वरूप यह मेला करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए एक अद्भुत अनुभव साबित होगा। श्रद्धालुओं के लिए यह अवसर एक जीवनभर का अनुभव होगा, जहां वे संगम में स्नान करके अपनी आध्यात्मिक यात्रा को आगे बढ़ा सकते हैं।
सभी श्रद्धालुओं को कुंभ मेला में एक सुरक्षित और सुखद यात्रा की शुभकामनाएँ!
Discover more from VPS Bharat
Subscribe to get the latest posts sent to your email.