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पुत्रदा एकादशी 10 जनवरी को, योग्य संतान की प्राप्ति के लिए करें बालकृष्ण की पूजा
हिंदू धर्म में पुत्रदा एकादशी को अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति और परिवार की समृद्धि के लिए रखा जाता है। श्रावण और पौष माह में आने वाली इस एकादशी का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है। इसे पुत्र देने वाली एकादशी के रूप में जाना जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा से सुख, शांति और इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
एकादशी तिथि का समय
पंचांग के अनुसार, इस साल पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 09 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 22 मिनट से शुरू हो रही है। यह तिथि 10 जनवरी को रात्रि 10 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी। इस प्रकार, पुत्रदा एकादशी 10 जनवरी को मनाई जाएगी।
पुत्रदा एकादशी का महत्व
1. संतान सुख का आशीर्वाद
पुत्रदा एकादशी व्रत उन दंपत्तियों के लिए विशेष रूप से फलदायी है जो संतान सुख की इच्छा रखते हैं। यह व्रत भगवान विष्णु और बालकृष्ण की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है।
2. पुण्यों का नाश और फल की प्राप्ति
शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत से वर्तमान और पूर्व जन्म के पाप समाप्त होते हैं। इसे करने से अग्निष्टोम यज्ञ के समान फल मिलता है। भगवान विष्णु भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
3. मोक्ष की प्राप्ति
यह व्रत केवल सांसारिक सुख-शांति ही नहीं, बल्कि मोक्ष का द्वार भी खोलता है।
4. परिवार में सुख-शांति और समृद्धि
पुत्रदा एकादशी व्रत परिवार की समृद्धि और शांति का प्रतीक माना गया है।
5. आध्यात्मिक उन्नति
भगवान विष्णु की पूजा और उनके नाम का स्मरण आत्मा को शुद्ध करता है और आध्यात्मिक विकास की ओर ले जाता है।
6. संपूर्ण परिवार का कल्याण
यह व्रत केवल संतान प्राप्ति के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण परिवार के कल्याण के लिए शुभ माना गया है।
पुत्रदा एकादशी पूजा विधि
ज्योतिषाचार्य पंडिता जागेश्वर अवस्थी के अनुसार, इस दिन प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थान पर भगवान विष्णु अथवा श्रीकृष्ण के बालरूप की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
पूजा की मुख्य विधि
- संतान सुख की कामना: योग्य संतान के इच्छुक दंपत्ति पीले वस्त्र धारण करें। भगवान को भी पीले वस्त्र पहनाएं।
- पूजन सामग्री: तुलसी, पीले पुष्प, फल, दीपक, और भोग अर्पित करें।
- मंत्र जाप: इस दिन संतान गोपाल मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- रात्रि जागरण: रात में भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें।
- व्रत पारण: अगले दिन द्वादशी पर व्रत का पारण करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
व्रत का कथानक
पूर्वकाल की बात है,भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम चंपा था। विवाह के काफी समय बाद भी राजा-रानी संतान सुख से वंचित थे।इसलिए दोनों पति-पत्नी सदा चिंता और शोक में डूबे रहते थे।एक दिन दुखी होकर राजा घोड़े पर सवार होकर गहन वन में चले गए। पुरोहित आदि किसी को इस बात का पता न था।मृग और पक्षियों से सेवित उस सघन वन में राजा भ्रमण करने लगे। वन में राजा को एक सुन्दर सरोवर के पास कुछ वेद पाठ करते हुए मुनि दिखाई पड़े । राजा मुनियों के पास पहुंचे और उन्हें प्रणाम किया । मुनियों ने बताया कि हम विश्वदेव हैं,यहां स्नान के लिए आए हैं। राजा ने उनसे अपनी संतानहीनता का दु:ख बताया और इसका उपचार भी पूछा। मुनियों ने राजा से कहा कि आपने बड़े ही शुभ दिन यह प्रश्न किया है,आज पौष शुक्ल एकादशी तिथि है । इसके बाद मुनियों के द्वारा बताई गई विधि से राजा ने पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा । इस व्रत के पुण्य से रानी ने कुछ समय बाद एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया । बड़ा होकर राजा का यह पुत्र धर्मात्मा और प्रजापालक हुआ।
क्यों रखें पुत्रदा एकादशी व्रत?
पुत्रदा एकादशी व्रत केवल संतान सुख प्रदान करने वाला नहीं, बल्कि परिवार की समृद्धि, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम भी है। इसे करने से भक्त भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त कर अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं।
निष्कर्ष
पुत्रदा एकादशी एक ऐसा पवित्र व्रत है जो संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले दंपत्तियों के लिए विशेष महत्व रखता है। इसके साथ ही यह व्रत मोक्ष, सुख, और परिवार की समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है। इस दिन श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु और बालकृष्ण की पूजा करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
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