हाईकोर्ट ने सुनवाई दो सप्ताह बाद निर्धारित की
पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय से भी राहत नहीं मिली। कोर्ट की सिंगल बेंच ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए निचली अदालत के निर्णय को सही ठहराया। एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) को नोटिस जारी कर 2 सप्ताह बाद सुनवाई की तारीख तय की गई है।
जमानत याचिका में क्या थे तर्क?
सतीश चंद्र वर्मा के वकील ने एफआईआर पर सवाल उठाते हुए कहा:
- राज्य शासन के प्रावधान के अनुसार, महाधिवक्ता के खिलाफ बिना अनुमति एफआईआर दर्ज नहीं हो सकती।
- 2018 में संशोधित नियमों के तहत, महाधिवक्ता के खिलाफ कार्रवाई के लिए धारा 17(ए) के तहत राज्यपाल की अनुमति जरूरी है।
- नान घोटाला 2015 का मामला है, लेकिन एफआईआर अब दर्ज की गई है।
- तीन साल पहले सुप्रीम कोर्ट में मामले से संबंधित चैट्स पर सुनवाई हो चुकी है, लेकिन सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की।
- याचिका में एफआईआर को राजनीति से प्रेरित बताते हुए निराधार कहा गया।
आरोप क्या हैं?
एसीबी और ईओडब्ल्यू ने 4 नवंबर को सतीश चंद्र वर्मा, रिटायर्ड आईएएस डॉ. आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा के खिलाफ केस दर्ज किया। आरोप हैं:
- गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास।
- तत्कालीन अफसरों और जज के बीच संपर्क बनाकर आरोपियों को बचाने की साजिश।
- ईडी ने 2019 में भी इसी मामले में केस दर्ज किया।
नान घोटाले का विवरण
2015 में छत्तीसगढ़ की नागरिक आपूर्ति निगम (नान) के जरिए संचालित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ।
- 12 फरवरी 2015 को एसीबी और ईओडब्ल्यू ने नान मुख्यालय और अधिकारियों-कर्मचारियों के 28 ठिकानों पर छापा मारा।
- करोड़ों रुपये की नकदी, दस्तावेज, डायरियां, कंप्यूटर हार्ड डिस्क बरामद हुईं।
- आरोप:
- राइस मिलों से घटिया चावल लेकर करोड़ों रुपये की रिश्वत ली गई।
- चावल के भंडारण और परिवहन में भ्रष्टाचार।
शुरुआती कार्रवाई:
- 27 आरोपियों पर मामला दर्ज हुआ, जिनमें शिवशंकर भट्ट प्रमुख थे।
- बाद में निगम के तत्कालीन अध्यक्ष और एमडी के नाम भी शामिल किए गए।
- सत्ता परिवर्तन से पहले तत्कालीन सरकार ने आरोपियों पर मुकदमा चलाने की अनुमति दी।
कोर्ट का निर्णय और अगला कदम
- हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत देने से इनकार किया।
- एसीबी से जवाब मांगा और मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद तय की गई है।
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