बिना सुनवाई दुकानें तोड़ने के आदेश पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक

तहसीलदार के आदेश को बताया विधि-विरुद्ध, 2 सप्ताह बाद अगली सुनवाई

बिल्हा तहसीलदार द्वारा सुनवाई का अवसर दिए बिना दुकानों को तोड़ने का आदेश देने के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप किया है। हाईकोर्ट ने आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाते हुए गुरुवार को इस मामले में दो सप्ताह बाद अगली सुनवाई निर्धारित की।


याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का अवसर नहीं मिला

तहसीलदार, बिल्हा ने 4 नवंबर 2024 को याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी किया था। इस राजस्व प्रकरण, महेंद्र सिंह सवन्नी बनाम राजेंद्र यादव में, याचिकाकर्ता तहसीलदार के समक्ष उपस्थित हुए और नोटिस का जवाब प्रस्तुत किया।

याचिकाकर्ताओं ने यह भी बताया कि वे पिछले 30 वर्षों से विवादित भूमि पर काबिज हैं। मामले को 20 नवंबर 2024 के लिए अगली सुनवाई हेतु नियत किया गया था। हालांकि, इसके बाद अगली सुनवाई की कोई जानकारी उन्हें नहीं दी गई।


बेदखली का आदेश और नोटिस

20 नवंबर को बिना किसी सूचना के याचिकाकर्ताओं के खिलाफ बेदखली का आदेश पारित किया गया। 28 नवंबर तक अतिक्रमण हटाने का निर्देश देते हुए नोटिस जारी किया गया।

याचिकाकर्ताओं को यह जानकारी 22 नवंबर को प्राप्त हुई, जिससे वे परेशान हो गए और हाईकोर्ट की शरण ली। मोहम्मद आरिफ, यज्ञेश साहू, और दीपक कुमार ने एडवोकेट धीरेन्द्र पाण्डेय, ईश्वर साहू, और विजय कुमार मिश्रा के माध्यम से इस आदेश को चुनौती दी।


हाईकोर्ट की प्रतिक्रिया

28 नवंबर को अर्जेंट हियरिंग के दौरान जस्टिस एनके चंद्रवंशी की सिंगल बेंच ने मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने पाया कि तहसीलदार द्वारा अगली सुनवाई की तारीख की सूचना याचिकाकर्ताओं को नहीं दी गई थी। इसके अलावा, बेदखली का आदेश सुनवाई की प्रक्रिया पूरी किए बिना पारित किया गया, जो विधि के अनुरूप नहीं है।


आदेश पर रोक

हाईकोर्ट ने मामले में तहसीलदार द्वारा जारी आदेश के प्रभाव और क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। कोर्ट ने इसे विधिक प्रक्रिया का उल्लंघन मानते हुए याचिकाकर्ताओं को राहत दी।


2 सप्ताह बाद अगली सुनवाई

अब इस मामले की अगली सुनवाई 2 सप्ताह बाद होगी। इस दौरान याचिकाकर्ताओं को किसी भी प्रकार की बेदखली का सामना नहीं करना पड़ेगा।


न्यायिक प्रक्रिया का पालन जरूरी

इस मामले ने प्रशासनिक आदेशों की प्रक्रिया और उनके कानूनी अनुपालन की अहमियत पर जोर दिया है। हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल याचिकाकर्ताओं को राहत प्रदान करता है बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों के लिए भी विधिक प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करने का संकेत है।


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