ससुराल में दोहरे हत्याकांड के दोषी का आजीवन कारावास बरकरार: हाईकोर्ट का फैसला

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने तखतपुर के खपरी गांव में हुए दोहरे हत्याकांड के दोषी अश्वनी धुरी के आजीवन कारावास की सजा को उचित ठहराया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस एके प्रसाद की डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया कि घायल गवाह की गवाही का सबूत के रूप में विशेष महत्व होता है।


क्या था मामला?

घटना 8 अक्टूबर, 2018 की रात की है, जब अश्वनी धुरी ने अपने ससुराल में घुसकर धारदार हथियारों (गंडासा और कुदाल) से हमला किया।

  • ससुर सियाराम और सास शकुन बाई की मौके पर ही मौत हो गई।
  • पत्नी उमा गंभीर रूप से घायल हो गई।
    यह हमला अश्वनी ने गुस्से और रंजिश में किया, क्योंकि पत्नी उमा ने सामाजिक तलाक के बाद अपने माता-पिता के साथ रहने का फैसला किया था और उसके पास लौटने से इनकार कर दिया था।

जिला कोर्ट का फैसला

नवंबर 2021 में, बिलासपुर की पांचवीं अतिरिक्त सत्र अदालत ने अश्वनी को भारतीय दंड संहिता की धाराओं:

  • 307 (हत्या का प्रयास)
  • 450 (जबरन घर में घुसना)
  • 302 (हत्या)
    के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

यह फैसला मुख्य रूप से घायल प्रत्यक्षदर्शी उमा धुरी की गवाही और अपराध स्थल से बरामद खून से सने हथियारों पर आधारित फोरेंसिक साक्ष्यों पर निर्भर था।


आरोपी की अपील और हाईकोर्ट का रुख

अश्वनी ने हाईकोर्ट में अपील करते हुए कहा कि:

  1. पत्नी उमा की गवाही अविश्वसनीय है, क्योंकि वह एक हितबद्ध पक्ष है।
  2. अभियोजन पक्ष स्वतंत्र गवाह पेश करने में असफल रहा।
  3. परिवार में संपत्ति विवाद के कारण उसे फंसाया गया है।

राज्य के वकील का पक्ष

राज्य के वकील ने तर्क दिया कि:

  • अभियोजन पक्ष के पास अकाट्य साक्ष्य थे।
  • उमा की गवाही चिकित्सा और फोरेंसिक रिपोर्ट से मेल खाती है।
  • अपराध स्थल से बरामद हथियार और पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने इस बात की पुष्टि की कि चोटें धारदार हथियारों से लगी थीं।

कोर्ट का निर्णय

हाईकोर्ट ने घायल गवाह की गवाही को विश्वसनीय मानते हुए अपील को खारिज कर दिया।

  • कोर्ट ने कहा कि उमा का बयान सुसंगत है।
  • बचाव पक्ष पुख्ता सबूत पेश करने में असफल रहा।
  • फोरेंसिक और पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने अभियोजन पक्ष की दलीलें मजबूत कीं।

महत्वपूर्ण संदेश

हाईकोर्ट ने कहा:

“घायल गवाह का बयान, विशेष रूप से जब वह घटनास्थल पर मौजूद हो, साक्ष्य के रूप में अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है और उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।”


निष्कर्ष

यह फैसला इस बात को रेखांकित करता है कि घायल प्रत्यक्षदर्शी की गवाही, यदि सुसंगत और फोरेंसिक साक्ष्य द्वारा समर्थित हो, तो न्यायिक प्रक्रिया में निर्णायक भूमिका निभाती है। अश्वनी धुरी का आजीवन कारावास न्यायसंगत ठहराया गया, जो न्याय के प्रति हाईकोर्ट की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।


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