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मतपत्र से होगा मतदान
प्रदेश में पांच साल बाद नगर निगम के महापौर और नगर पालिका एवं नगर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराया जाएगा। जनता अब सीधे अपने महापौर और अध्यक्ष का चयन करेगी। इस बार ईवीएम की जगह मतपत्र से मतदान होगा। चुनाव के दौरान मतदाता को पार्षद और महापौर/अध्यक्ष पद के लिए अलग-अलग दो वोट डालने होंगे।
कांग्रेस सरकार ने बदली थी प्रक्रिया
भाजपा के 15 साल के कार्यकाल में महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होता था। लेकिन पिछली कांग्रेस सरकार ने इसे बदलकर अप्रत्यक्ष प्रणाली लागू की थी। अब इस बदलाव के बाद, जनता द्वारा सीधे महापौर का चयन किए जाने से चुनाव और भी दिलचस्प हो जाएगा। पार्षदों का बहुमत किसी भी दल का हो, महापौर वही बनेगा जिसे जनता चुनेगी।
अविभाजित मध्यप्रदेश में भी थी प्रत्यक्ष प्रणाली
अविभाजित मध्यप्रदेश में निगम और पालिकाओं के महापौर तथा अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होता था। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भी यह प्रक्रिया जारी रही। लेकिन भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसे अप्रत्यक्ष प्रणाली में बदल दिया था। पिछली बार बिलासपुर में कांग्रेस के पार्षद रामशरण यादव को पार्टी सहमति और सर्वसम्मति से महापौर चुना गया था।
दलबदल पर अंकुश, फैसलों में स्वतंत्रता
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली लागू करने के पीछे तर्क है कि इससे दलबदल की संभावनाएं कम होंगी। अप्रत्यक्ष प्रणाली में पार्षदों की संख्या का अंतर कम होने पर दलबदल और सौदेबाजी की स्थिति बन सकती थी। साथ ही पार्षदों का दबाव महापौर और अध्यक्ष के फैसले लेने में बाधा बनता था। प्रत्यक्ष प्रणाली से यह दबाव कम होगा, और महापौर फैसले लेने में स्वतंत्र होंगे।
रोमांचक मुकाबले की उम्मीद
इस बार के चुनाव में जनता की सीधी भागीदारी से राजनीतिक गलियारों में रोमांचक मुकाबले की उम्मीद है। महापौर और अध्यक्ष पद के लिए जनता की भूमिका निर्णायक होगी, जिससे राजनीतिक समीकरणों में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
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