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– कृषि महाविद्यालय, अनुसंधान केंद्र और कृषि विज्ञान केंद्र का संयुक्त आयोजन
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, बिलासपुर तथा कृषि विज्ञान केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर पारंपरिक त्योहार “अक्ती तिहार” का आयोजन हर्षोल्लास के साथ किया गया। यह पर्व छत्तीसगढ़ की गहरी कृषि परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतीक माना जाता है।
कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक पूजा-अर्चना से हुई, जिसके बाद बीजों की बुवाई की गई। इस प्रक्रिया में जैविक खाद, वर्मी कम्पोस्ट और गोमूत्र जैसे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए पर्यावरण-संवेदनशील और सतत कृषि को बढ़ावा देने का संकल्प लिया गया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कृषि महाविद्यालय, बिलासपुर के अधिष्ठाता डॉ. एन.के. चौरे ने कहा,
“अक्ती तिहार केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि यह हमारी कृषि संस्कृति की आत्मा है। इसी दिन से नयी फसल की तैयारी प्रारंभ होती है और एक नए कृषि चक्र की शुरुआत होती है। हमारे पूर्वजों ने धरती माता के सम्मान में यह परंपरा शुरू की, जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।”
उन्होंने यह भी कहा कि वैज्ञानिक अनुसंधान तभी सार्थक है जब उसका लाभ सीधे किसानों के खेतों तक पहुँचे। साथ ही, उन्होंने पारंपरिक खेती और जैविक पद्धतियों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर बल दिया।

इस आयोजन में कृषि महाविद्यालय, अनुसंधान केंद्र एवं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक, अधिकारी, प्राध्यापक, कर्मचारी और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं शामिल हुए। सभी ने एकजुट होकर छत्तीसगढ़ की समृद्ध कृषि विरासत को सम्मान देने का संदेश दिया।
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