सोने-चाँदी नहीं, बच्चों की वापसी बनी हमारी असली धनतेरस
— डॉ. एस. के. मिश्रा धनतेरस की भोर थी। आसमान में हल्की गुलाबी रोशनी तैर रही थी, और पूरे मोहल्ले में उत्सव की सुगंध घुली हुई थी। बाजारों में चाँदी की खनक और दीयों की झिलमिलाहट थी, लेकिन हमारे घर की प्रतीक्षा किसी और चीज़ की थी — अपने बच्चों की। सुबह जैसे…